राह के आखिरी कदम पर
समायी थी जो वेदना
एक जोड़ी ह्रदय में
वह अहसास थी खुद के
खुद से दूर होने होने का ....
ह्रदय के किसी टुकडे को कहीं
किसी अजनबी जमीं की ओर
जाते देख हुयी थी जो आशंका
वह एहसास थी
बाकी बची उम्र
खतों के सहारे काटने का....
और एहसास तो उस कसम का
गोलबंद घेरा भी था ,जिसमे
कुछ बहुत छोटी पंक्तियाँ
लाल कलम से रेखांकित थी
"कैसे जियेगे हम अलग होकर" .....
जिंदगी में जरूरी है ऐसे अहसास
पर अहसासों से कहा चल पाती जिंदगी !
और आदमी है ही क्या
अहसासों से बुनी हुयी एक झीनी चदरिया के अलावा....
सचिन सिंह
समायी थी जो वेदना
एक जोड़ी ह्रदय में
वह अहसास थी खुद के
खुद से दूर होने होने का ....
ह्रदय के किसी टुकडे को कहीं
किसी अजनबी जमीं की ओर
जाते देख हुयी थी जो आशंका
वह एहसास थी
बाकी बची उम्र
खतों के सहारे काटने का....
और एहसास तो उस कसम का
गोलबंद घेरा भी था ,जिसमे
कुछ बहुत छोटी पंक्तियाँ
लाल कलम से रेखांकित थी
"कैसे जियेगे हम अलग होकर" .....
जिंदगी में जरूरी है ऐसे अहसास
पर अहसासों से कहा चल पाती जिंदगी !
और आदमी है ही क्या
अहसासों से बुनी हुयी एक झीनी चदरिया के अलावा....
सचिन सिंह