Wednesday 3 August 2011

MOHHABAT KI JAMIN BARSO SE BANJAR KYO HAI..........

आज  हर कतरा  नुमायश  में समंदर क्यों है 
सबकी ख्वाहिश यहाँ औखात से बढकर क्यों है ,

फसल नफरत की तो उग जाती है हर मौसम में 
मगर मोहब्बत की जमीं बरसों से बंजर क्यों है,

 जब भी तारीख पड़ी है एक ख्याल आया है
खून में लिपटी हुई तहजीब की चादर क्यों है,

जिस माँ ने अपने बच्चो के लिए ख्वाबो की पोशाक बुनी
यहाँ चिथड़ा हर- बार  उसी " माँ"  का मुकददर क्यों है,

एक ही हस्ती के दो रूप है- "अल्लाह और राम"
फिर जमीं पर मंदिर और मस्जिद का झगडा क्यों है,

फिक्र बस इतनी है शैतान सियासत  को " सचिन"
इस जहाँ में कोई इंसान मोहब्बत की सड़क पर क्यों है..............  

  

1 comment:

  1. सचिन......
    अच्छा लगा ग़ज़ल को पढ़कर.... बहुत तेजी से ग़ज़ल कहने का हुनर सीख रहे हो....!!!
    ईश्वर तुम्हे यह हुनर और बख्से.
    पूरी ग़ज़ल तल्ख़ तेवरों से भरी है मगर ये दो शेर लाजवाब हैं कि....
    आज हर कतरा नुमायश में समंदर क्यों है
    सबकी ख्वाहिश यहाँ औखात से बढकर क्यों है ,
    (औखात की जगह औकात लिखा जाता है)
    और

    फसल नफरत की तो उग जाती है हर मौसम में
    मगर मोहब्बत की जमीं बरसों से बंजर क्यों है,
    उम्दा सोच .

    ReplyDelete