Tuesday 27 December 2011

अहसास

राह के आखिरी कदम पर
समायी थी जो वेदना
एक जोड़ी ह्रदय में
वह अहसास थी खुद के
खुद से दूर होने  होने का ....

ह्रदय के किसी टुकडे को कहीं
किसी अजनबी जमीं की ओर
जाते देख हुयी थी जो आशंका
वह एहसास थी
बाकी बची  उम्र
खतों के सहारे काटने का....

और एहसास तो उस कसम का
गोलबंद घेरा भी था ,जिसमे
कुछ बहुत छोटी पंक्तियाँ
लाल कलम से रेखांकित थी
"कैसे जियेगे हम अलग होकर" .....

जिंदगी में जरूरी है ऐसे अहसास
पर अहसासों से कहा चल पाती जिंदगी !
और आदमी है ही क्या
अहसासों से बुनी हुयी एक झीनी चदरिया के अलावा....



सचिन सिंह

कौन कहता है ख़ुशी में है खलल सी लड़की .....

वो जफ़र मीर ओ ग़ालिब की गजल- सी लड़की
चांदनी रात में इक ताजमहल-सी लड़की

जिन्दा रहने को ज़माने से लड़ेंगी कब तक
झील के पानी में शफ्फाक कँवल-सी लड़की

कोंख को बना डाला कब्र किसी औरत ने
कट गयी पकने से पहले ही फसल-सी लड़की

नर्म हाथो पे नसीहत के धरे अंगारे
चाँद छूने को गयी जब भी मचल-सी लड़की

बेटियां बहुत दुआओ से मिला करती है
कौन कहता है,ख़ुशी में है खलल-सी लड़की 

अर्ज इतना है आज के माँ-बाप से "सचिन"
बोझ समझो न है अल्लाह के फजल सी लड़की 



सचिन सिंह