Thursday 14 June 2012


                                               
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने लिए आ.....!!

सरगम की सोलह पीढ़ियों की विरासत,राजस्थान की
मिट्टी की खुशबूँ ,कराची की महफ़िल और
साज़ से बेपनाह मोहब्बत.... 
"शहंशाह-ए-गजल" मेहदी हसन साहब की यही ताकत
उनके लिए दुनिया भर में प्यार बटोरती रही .....और रहेंगी !!

सुरों की दुनिया में ऐसे गम के मौके कम ही आते है ,
जब जुबान थरथरा रही है ,सोच सजायाफ्ता कैदी की
तरह बुत बनकर खड़ी है और मुझे अभी भी यकीन नहीं
हो रहा कि "शहंशाह-ए-गजल" मेहदी हसन साहब नहीं रहे...!!
वे "खुदा की आवाज़" थे और क्या खुदा की
आवाज़ भी मौन हो सकती है .... शायद नहीं !!
उनकी सूरो से सजा यह शेर जहन में आता है -

"तेरी महफ़िल से हम निकल जायेंगे,
शमां जलती रहेंगी -परवाने निकल जायेगे" !!


हिंदुस्तान -पाकिस्तान के बीच भले ही राजनयिक,
सैनिक,आतंकवाद और आर्थिक मसलो पर ढेरो
गतिरोध हो  लेकिन संगीत की लहरों को
सरहद की दीवारे कभी रोक नहीं पायी है
मेहदी हसन साहब ने हिंदुस्तान -पाकिस्तान के मध्य
सदैव एक शांति और सांस्कृतिक दूत की भूमिका अदा की...

भूली बिसरी चंद उम्मीदे ,चंद फ़साने याद आये
तुम याद आये और तुम्हरे साथ ज़माने याद आये !!

यह मुमकिन ही नहीं कि रूह, दर्द, अहसास को
जज्बाती जुबा देने वाले इस फनकार को सुनने
वाले उन्हें भुला पायेगे....!!
उनकी दिलकश आवाज़ और सुरीली ज़िन्दगी
आने वाली कई पीढ़ियों को मौसिकी का पाठ
 पढ़ाती रहेंगी .....
अब तो बस यही गुनगुना सकते है-

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ,
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने लिए आ !!

"शहंशाह-ए-गजल" मेहदी हसन को  शत-२ नमन ....!!

सचिन सिंह