Sunday 21 August 2011

है जो हकीकत उसे किस्सों की जरूरत क्या है.....

दर्दे इन्सान को नगमों की जरूरत क्या है, 
 है जो हकीकत उसे किस्सों की जरूरत क्या है,

अश्क हर आँख का खुद ही में गजल होता है,
 ऐसे एहसास को शेरों की जरूरत क्या है,

जब  हर चीज  यहाँ  दिखाते है यहाँ टीवी पर
तो किसी भी घर को  पर्दों की जरूरत क्या है ,

मर्द बनते है मगर जुल्म बस औरत पर
ऐसी बस्ती को  नामर्दों की जरूरत क्या क्या है,

जुल्म  को देखा, सुना और कहा कुछ भी नहीं   
अब इस दुनिया में अंधे, गूंगो की जरूरत क्या है

मुल्क की हड्डी भी नहीं छोड़ी इस रिश्वत ने 
अब इस मुल्क को कायरों  की जरूरत क्या है........





















Wednesday 3 August 2011

MOHHABAT KI JAMIN BARSO SE BANJAR KYO HAI..........

आज  हर कतरा  नुमायश  में समंदर क्यों है 
सबकी ख्वाहिश यहाँ औखात से बढकर क्यों है ,

फसल नफरत की तो उग जाती है हर मौसम में 
मगर मोहब्बत की जमीं बरसों से बंजर क्यों है,

 जब भी तारीख पड़ी है एक ख्याल आया है
खून में लिपटी हुई तहजीब की चादर क्यों है,

जिस माँ ने अपने बच्चो के लिए ख्वाबो की पोशाक बुनी
यहाँ चिथड़ा हर- बार  उसी " माँ"  का मुकददर क्यों है,

एक ही हस्ती के दो रूप है- "अल्लाह और राम"
फिर जमीं पर मंदिर और मस्जिद का झगडा क्यों है,

फिक्र बस इतनी है शैतान सियासत  को " सचिन"
इस जहाँ में कोई इंसान मोहब्बत की सड़क पर क्यों है..............