Sunday 21 August 2011

है जो हकीकत उसे किस्सों की जरूरत क्या है.....

दर्दे इन्सान को नगमों की जरूरत क्या है, 
 है जो हकीकत उसे किस्सों की जरूरत क्या है,

अश्क हर आँख का खुद ही में गजल होता है,
 ऐसे एहसास को शेरों की जरूरत क्या है,

जब  हर चीज  यहाँ  दिखाते है यहाँ टीवी पर
तो किसी भी घर को  पर्दों की जरूरत क्या है ,

मर्द बनते है मगर जुल्म बस औरत पर
ऐसी बस्ती को  नामर्दों की जरूरत क्या क्या है,

जुल्म  को देखा, सुना और कहा कुछ भी नहीं   
अब इस दुनिया में अंधे, गूंगो की जरूरत क्या है

मुल्क की हड्डी भी नहीं छोड़ी इस रिश्वत ने 
अब इस मुल्क को कायरों  की जरूरत क्या है........





















1 comment:

  1. सचिन ग़ज़ल में तेवर अच्छे है मगर भाषा में संयत रहने की जरूरत है...... आशय तुम समझ गए होगे.

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