माँ की ऐनक पिता की लाठी उठाकर बेच दी
हमने हर संवेदना मजमा लगाकर बेच दी
जो कभी ईनाम में पायी थी सोने की कलम
सात दिन भूखे रहे कल कसमकसा कर बेच दी
मयकशी,मुजरे, जुएँ के इस कदर शौक़ीन है
फसल बेचीं,खेत बेचें आज बाखर बेच दी
इस मतलब परस्ती के अजब दौर में
लोगो ने दोस्ती की सासें निकालकर बेच दी
एक गणिका के पसीने में नहाने के लिए
लोगो ने राजाराम की मूरत गलाकर बेच दी ......
बहुत सुन्दर विचारों से ओतप्रोत कविता.....
ReplyDeletegazab...
ReplyDeleteबहुत खूब सचिन
ReplyDeleteलिखते रहो
अच्छा लिख रहे हो
रास्ते कठिन है मगर बंद नहीं
बधाई
माँ की ऐनक पिता की लाठी उठाकर बेच दी
ReplyDeleteहमने हर संवेदना मजमा लगाकर बेच दी
क्या बात है सचिन जी आपकी कलम में कमाल है ....
सभी शेर एक से बढ़ कर एक लगे .....
'जुएँ' शब्द एक बार देख लें ....
Really Now i m your fan... what a writings.. I just gone through your blog... Really Really Very Interesting.... not only Interesting but informative, transformative and inspirational
ReplyDeleteSachin Ji
"SACHIN JI:
Jindgi ki asali udhan abhi baki hai, Aapke erado ka imtihan abhi baki hai
Abhi to mapi hai muthhi bhar jameen abhi to sara aasman baki hai"
आप सभी का हार्दिक आभार....
ReplyDeleteआप सब अपना प्यार बनाये रखे
क्योकि आपका प्यार ही मेरी ताकत है...
धन्यवाद .....दोस्तों