Tuesday 27 December 2011

अहसास

राह के आखिरी कदम पर
समायी थी जो वेदना
एक जोड़ी ह्रदय में
वह अहसास थी खुद के
खुद से दूर होने  होने का ....

ह्रदय के किसी टुकडे को कहीं
किसी अजनबी जमीं की ओर
जाते देख हुयी थी जो आशंका
वह एहसास थी
बाकी बची  उम्र
खतों के सहारे काटने का....

और एहसास तो उस कसम का
गोलबंद घेरा भी था ,जिसमे
कुछ बहुत छोटी पंक्तियाँ
लाल कलम से रेखांकित थी
"कैसे जियेगे हम अलग होकर" .....

जिंदगी में जरूरी है ऐसे अहसास
पर अहसासों से कहा चल पाती जिंदगी !
और आदमी है ही क्या
अहसासों से बुनी हुयी एक झीनी चदरिया के अलावा....



सचिन सिंह

4 comments:

  1. Very informative ....... Nice
    Keep it up Dear........

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  2. सचिन जी
    आपके ब्लॉग पर पहली बार आयी हूँ
    झूठी तारीफ नहीं करूंगी
    आपने जो शब्दों का जाल बुना है बो तो ठीक है पर पर ये नातो कविता है न गीत है न नज़म है और नहीं गजल अप क्या लिख रहे है आपको खुद नहीं पता और आपने अपनी प्रोफ़ाइल मे लिखा है...।
    ASSOCIATE EDITOR IN REGIONAL MAGAZINE- VILLAGE टीओडीएवाई ये कौन सी मगजीन है क्रपया अवश्य बताएं
    आपके उत्तर की परतीक्षा मे सोनाली

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  3. राह के आखिरी कदम पर
    समायी थी जो वेदना
    एक जोड़ी ह्रदय में
    वह अहसास थी खुद के
    खुद से दूर होने होने का ....
    behtreen prastuti.........

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  4. सुन्दर भावपूर्ण रचना...बहुत बहुत बधाई...

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