Tuesday 21 June 2011

PAAT JHARE PHIR-2 HOGE HARE.........

कोयले उदास,मगर फिर-2 वे गायेगी,
नए-२ चिन्हों से राहे भर जाएगी,


खुलने दो कलियों की ठिठुरी यह मुठियाँ
माथें पर नई-२ सुबहे मुस्कायेंगी,


नयन-नयन फिर-फिर होंगे भरे
               पात झरे
पात झरे, फिर-फिर होंगे हरे.......





2 comments:

  1. नयन-नयन फिर-फिर होंगे भरे
    पात झरे
    पात झरे, फिर-फिर होंगे हरे.......
    यह कविता एक सहज सलोने भविष्य को इंगित करती है ............. महज दो दिनों में चार पोस्ट, वो भी एक से बढ़ कर एक....वाह वाह !
    कोई संदेह नहीं कि मैं एक उभरते हुए ब्लोगर की रचनाएँ पढ़ रहा हूँ. बहुत अच्छा लिख रहे हो अपने ब्लॉग के नाम के मुताबिक.... सचमुच ये सफलता की और ही बढ़ते हुए कदम हैं.... बस यूँ ही लगे रहो.

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