होने को होता है पर,
कुछ का कुछ-
निश्चित हो जाता है,
आते-आते हाथ
फिसलकर "मीन" जैसा
हल खो जाता है,
अपने ही वारों से,अपने को बचने की,
राह कठिन है,मेहंदी सा पीसकर रचने की
यूं तो सरल सीधी है,
पर राही यहाँ भ्रमित हो जाता है,
अपने हाथों काट लिया लेकिन फिर बुनना,
बीच-बीच में वाजिव कहना, वाजिव सुनना,
राहे बहुत सरल सीधी है,
राही यहाँ भ्रमित हो जाता है......
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