क्या मेरी चाहत बहुत ज्यादा थी ?
मैंने तो चाही थी सिर्फ दो आखें
और कुछ भी तो नहीं,
भोर नहीं, साँझ नहीं, आंधी रात नहीं,
अन्न नहीं, वस्त्र नहीं, छत्त नहीं,
स्मरण मनन कुछ भी नहीं,
क्षण-भर की एकाग्रता के बाद और
अगले ही पल उसका मिट जाना-
सिर्फ यही तो..........
फिर भी क्या मेरी चाहत बहुत ज्यादा थी......?????
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